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Course Content

7 Chapter 45 Lessons

1. श्लोक 1 - मंगलाचरण
Preview 30 Min


2. श्लोक 2 - ग्रन्थ कहने की प्रतिज्ञा
Preview 24 Min


3. श्लोक 3 - सच्चे धर्म का स्वरुप
Preview 26 Min


4. श्लोक 4 - सम्यग्दर्शन की परिभाषा
Preview 16 Min


5. श्लोक 5 - सच्चे देव का स्वरुप
Preview 16 Min


6. श्लोक 6 - 18 दोषों से रहित जिनदेव
Preview 19 Min


7. श्लोक 7 - हितोपदेशी कौन
Preview 19 Min


8. श्लोक ८ - कैसे खिरती है दिव्यध्वनि - भाग - 1
Preview 9 Min


9. श्लोक ८ - कैसे खिरती है दिव्यध्वनि - भाग 2
Preview 13 Min


10. श्लोक 9 - सच्चे शास्त्र का स्वरुप
Preview 15 Min


11. श्लोक 10 - सच्चे गुरु का स्वरुप
Preview 16 Min


12. श्लोक ११ - निशंकित अंग
Preview 13 Min


13. श्लोक १२ - नि:कांक्षित अंग
Preview 11 Min


14. श्लोक 13 - निर्विचिकित्सा अंग
Preview 10 Min


15. श्लोक १४ - अमूढ़दृष्टि अंग
Preview 10 Min


16. श्लोक १५ - उपगूहन अंग
Preview 8 Min


17. श्लोक 16 - स्थितिकरण अंग
Preview 7 Min


18. श्लोक 17 - वात्सल्य अंग
Preview 13 Min


19. श्लोक 18 - प्रभावना अंग
Preview 13 Min


20. श्लोक 19 , 20 - आठ अंगधारी के नाम
Preview 9 Min


21. श्लोक 21 - अंगहीन सम्यक्त्व व्यर्थ है
Preview 15 Min


22. श्लोक 22 - लोक मूढ़ता
Preview 15 Min


23. श्लोक 23- देव मूढ़ता
Preview 17 Min


24. श्लोक 24 - गुरु मूढ़ता
Preview 11 Min


25. श्लोक 25 - आठमद के नाम
Preview 16 Min


26. श्लोक 26 - मद करने से हानि
Preview 9 Min


27. श्लोक 26 - मद करने से हानि , भाग 2
Preview 10 Min


28. श्लोक २७ - पाप त्याग का उपदेश
Preview 9 Min


29. श्लोक 28 - सम्यग्दर्शन की महिमा
Preview 10 Min


30. श्लोक 29 - धर्म और अधर्म का फल
Preview 12 Min


31. श्लोक 30 - सम्यग्दृष्टि कुदेवादिक को नमन ना करे
Preview 20 Min


32. श्लोक 31 - सम्यग्दर्शन की श्रेष्ठता
Preview 9 Min


33. श्लोक 32 - सम्यग्दर्शन के बिना ज्ञान चारित्र की असम्भवता
Preview 9 Min


34. श्लोक 33 - मोही मुनि की अपेक्षा निर्मोही गृहस्थ श्रेष्ठ
Preview 9 Min


35. श्लोक 34 - श्रेय और अश्रेय का कथन
Preview 10 Min


36. श्लोक 35 - सम्यग्दृष्टि के अनुत्पत्ति के स्थान
Preview 10 Min


37. श्लोक ३६ - सम्यग्दृष्टि जीव श्रेष्ठ मनुष्य होते हैं
Preview 10 Min


38. श्लोक ३७ - सम्यग्दृष्टि जीव इंद्र पद पाते हैं
Preview 8 Min


39. श्लोक 38 - सम्यग्दृष्टि ही चक्रवर्ती होते हैं
Preview 9 Min


40. श्लोक 39 - सम्यग्दृष्टि ही तीर्थंकर होते हैं
Preview 8 Min


41. श्लोक 40 - सम्यग्दृष्टि ही मोक्ष-पद प्राप्त करते हैं
Preview 10 Min


42. श्लोक 41 - सम्यग्दर्शन का फल
Preview 7 Min


1. श्लोक 42 - सम्यग्ज्ञान का लक्षण
Preview 10 Min


2. श्लोक ४३ - प्रथमानियोग की महिमा
Preview 11 Min


3. श्लोक 44 - करणानुयोग का लक्षण
Preview 7 Min


Course Description

📜 रत्नकरंड श्रावकाचार जी – श्रावक जीवन का आदर्श मार्ग 📜

🔹 श्रावक धर्म का दिव्य संहिता
🔹 सदाचार, संयम और आत्मशुद्धि का पथ
🔹 जैन श्रावकों के कर्तव्यों और व्रतों का गहन मार्गदर्शन

रत्नकरंड श्रावकाचार जी आचार्य समंतभद्र द्वारा रचित एक अत्यंत महत्वपूर्ण जैन ग्रंथ है, जो श्रावकों के लिए धर्म, आचरण और आध्यात्मिक उन्नति का श्रेष्ठ मार्गदर्शन प्रदान करता है। यह ग्रंथ न केवल श्रावकों के कर्तव्यों और व्रतों का वर्णन करता है, बल्कि उनके आदर्श जीवनशैली को भी परिभाषित करता है।

🌿 इस ग्रंथ की प्रमुख शिक्षाएँ:
पाँच महाव्रतों (अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह) का अनुपालन
गृहस्थ जीवन में संयम और साधना का महत्व
श्रावक के बारह व्रतों का विस्तृत वर्णन
दैनिक पूजन, व्रत, तप एवं त्याग का मार्गदर्शन
अध्यात्म और मोक्षमार्ग की ओर अग्रसर होने के सूत्र

🕉 "श्रावक वही, जो संयम-साधना में रत रहे!"

🙏 इस कोर्स के माध्यम से आप रत्नकरंड श्रावकाचार जी के गूढ़ रहस्यों को समझकर अपने जीवन में इन्हें आत्मसात कर सकते हैं। यह न केवल आपकी आत्मा को शुद्ध करेगा, बल्कि आपको मोक्ष मार्ग की ओर भी अग्रसर करेगा।

📅 अवधि: [यहाँ कोर्स की अवधि डालें]
📍 पाठ्यक्रम माध्यम: ऑनलाइन / ऑफलाइन
🎯 उपयुक्त: जैन अनुयायी, साधक, एवं आध्यात्मिक जीवन में रुचि रखने वाले सभी लोग

धर्म की राह पर चलें और अपने जीवन को पावन बनाएं!

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